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गरचे मैंने छुपाया था राज़े-दिल तुम से
डर था तेरी निगाह में यह ना क़ुसूर होता
कहना था पर न कहा इसमें ख़ता मेरी थी
कहता दर्दे-हिज्र<ref>विरह का दर्द</ref> भी जो ना मजबूर होता
बद-क़िस्मती क़िस्स-ए-इश्क़ मुख़्तसर<ref>संक्षिप्त</ref> था बहुत