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कहा जाता है कि शकेब ने 15 साल की उम्र से ही शेर कहना शुरू कर दिया था । इसकी कोई ख़ास ख़बर नहीं कि वो लिखा हुआ क्या है । अब तो जो दिखाई देता है वो तो न जाने कितने इंसानों की कुल जमा उम्र के बराबर का दिखाई देता है । आज की नस्ल की नई शायरी पर छाया शकेबाना अन्दाज़ इस बात का एक पाएदार सबूत है ।
12 नवम्बर 1966 को रेल पटरी पर जाकर शकेब ने जान दे दी । पहले तो सिर्फ एक मजमूआ ‘रौशनी ऎ रोशनी’ ऐ रौशनी’ ही मौजूद था पर बाद में लाहौर से ‘कुलियाते शकेब जलाली’ भी आ गया है ।
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