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{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसीदास
}}{{KKCatKavita}}[[Category:लम्बी रचना]]{{KKPageNavigation|पीछे=विनयावली() * [[पद 221 से 230 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 221]]|आगे=विनयावली() * [[पद 221 से 230 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 242]]|सारणी=विनयावली() * [[पद 221 से 230 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 3]]}}<poem>'''* [[पद 221 से 230 तक'''/ तुलसीदास/ पृष्ठ 4]](225) भरोसो और आइहै उर ताके। कै कहुँ लहै जो रामहि-सो साहिब, कै अपनो बल जाके।। कै कलिकाल कराल न सूझत, मोह-मार-मद छाके। कै सुनि स्वामि-सुभाउ न रह्यो चित जो हित सब अंग थाके।। हौं जानत भलिभाँति अपनपो, प्रभु-सो सुन्यो न साके। उपल, भील,खग, मृग, रजनीचर, भले भये करतब काके।। मोको भलो राम-नाम सुरतरू-सो रामप्रसाद कृपालु कृपाके। तुलसी सुखी निसोच राज ज्यों बालक माय-बबाके।। <* [[पद 221 से 230 तक /poem>तुलसीदास/ पृष्ठ 5]]
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