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'''( भगवान् रामकी उदारता )'''
छंद नगरू कुबेरको सुमेरूकी बराबरी, बिरंचि-बुद्धिको बिलासु लंक निरमान भो। ईसहि चढ़ाइ सीस बीसबाहु बीर तहाँ, रावनु सो राजा रज-तेजको निधानु भो।। तीसरें उपास बनबास सिंधु पास सो समाजु महाराजजू को एक दिन दानु भो।32। ‘तुलसी’ तिलोककी समृद्धि, सौंज, संपदा , सकेलि चाकि राखी, रासि, जाँगरू जहानु भो।
</poem>
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