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कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 25

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'''( भगवान् रामकी उदारता )'''
छंद नगरू कुबेरको सुमेरूकी बराबरी, बिरंचि-बुद्धिको बिलासु लंक निरमान भो।  ईसहि चढ़ाइ सीस बीसबाहु बीर तहाँ, रावनु सो राजा रज-तेजको निधानु भो।।   तीसरें उपास बनबास सिंधु पास सो समाजु महाराजजू को एक दिन दानु भो।32। ‘तुलसी’ तिलोककी समृद्धि, सौंज, संपदा , सकेलि चाकि राखी, रासि, जाँगरू जहानु भो। 
</poem>
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