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{{KKRachna
| रचनाकार=रमा द्विवेदी
}}
<poem>
नहीं भाया उनको मेरा मुस्कराना।
दिया आंसुओं का मुझे नज़राना॥
सरल सा समर्पण नहीं भाया उनको,
बनाया है मुझको हँसी का तराना।
नहीं मांगे हमने कभी चाँद-तारे,
दिया एक दिल ना हुए यूँ बेगाना।
चाहत हमारी ना कुछ काम आई,
सीखा उन्होंने बस सितम हम पे ढ़ाना।
दिया सब लुटा बेवफ़ाई पे उनकी,
नहीं आया हमको शम्मा सा जलाना
<poem>
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| रचनाकार=रमा द्विवेदी
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<poem>
नहीं भाया उनको मेरा मुस्कराना।
दिया आंसुओं का मुझे नज़राना॥
सरल सा समर्पण नहीं भाया उनको,
बनाया है मुझको हँसी का तराना।
नहीं मांगे हमने कभी चाँद-तारे,
दिया एक दिल ना हुए यूँ बेगाना।
चाहत हमारी ना कुछ काम आई,
सीखा उन्होंने बस सितम हम पे ढ़ाना।
दिया सब लुटा बेवफ़ाई पे उनकी,
नहीं आया हमको शम्मा सा जलाना
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