भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }} <poem> निगाहें हैं उनमें, कलाएँ भी उ…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
| रचनाकार=रमा द्विवेदी
}}
<poem>

निगाहें हैं उनमें, कलाएँ भी उनमें,
दिल को लुभाने की अदाएँ भी उनमें ।

किया याद दिल ने जब बुलाने के खातिर,
बहाने बनाने के बहाने हैं उनमें।

कड़ी धूप में जब झुलसता था यह तन,
तपन को बुझाने की घटाएँ हैं उनमें।

तन्हा था यह दिल अब जी न सकेंगे,
हँसकर हँसाने की हँसिकाएँ हैं उनमें।

मौत से लड़ रही थी जब यह ज़िन्दगी,
खुदा को मनाने की सदाएँ हैं उनमें।
<poem>
335
edits