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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }} <poem> ज़िन्दगी है खूबसूरत और रंग भ…
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{{KKRachna
| रचनाकार=रमा द्विवेदी
}}
<poem>
ज़िन्दगी है खूबसूरत और रंग भी बेशुमार हैं,
आदमी की फ़ितरतों से ज़िन्दगी बेहाल है।
अधिकार की भूख आज सुरसा सी बढ़ गई,
कर्तव्य के खेत को अहं की तृष्णा चर गई,
श्मसान से रिश्ते लगे,स्वार्थ का यह हाल है।
स्नेह तन्तु शिथिल हुए सब कुछ बिखर-बिखर गया,
कहने को तो हम साथ हैं पर मन भटक-भटक गया,
अनुबंध भी स्वच्छंद हैं हर रिश्ते में मलाल है।
दोस्ती का रंग भी आज फीका पड़ गया ,
दोस्ती का मतलब, मतलब ही तक रह गया,
दोस्ती के बीच अब सवाल ही सवाल हैं।
माता-पिता में तन रही, भाई-बहन में ठन रही,
अधिकार की जंग में देशों में भी न बन रही।
मेरा-मेरा ही सब करें चारो तरफ बवाल है।
<poem>
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| रचनाकार=रमा द्विवेदी
}}
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ज़िन्दगी है खूबसूरत और रंग भी बेशुमार हैं,
आदमी की फ़ितरतों से ज़िन्दगी बेहाल है।
अधिकार की भूख आज सुरसा सी बढ़ गई,
कर्तव्य के खेत को अहं की तृष्णा चर गई,
श्मसान से रिश्ते लगे,स्वार्थ का यह हाल है।
स्नेह तन्तु शिथिल हुए सब कुछ बिखर-बिखर गया,
कहने को तो हम साथ हैं पर मन भटक-भटक गया,
अनुबंध भी स्वच्छंद हैं हर रिश्ते में मलाल है।
दोस्ती का रंग भी आज फीका पड़ गया ,
दोस्ती का मतलब, मतलब ही तक रह गया,
दोस्ती के बीच अब सवाल ही सवाल हैं।
माता-पिता में तन रही, भाई-बहन में ठन रही,
अधिकार की जंग में देशों में भी न बन रही।
मेरा-मेरा ही सब करें चारो तरफ बवाल है।
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