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Kavita Kosh से
मटमैली गीली संध्याएँ ।
हल्के हाथों के तकिए पर
सिर रखकर सो गई हवाएँ ।
दूर अँधेरे में घोड़े की
टाप बन गईं नई दिशाएँ ।
सबसे भली नींद की गोली
जब चाहें खाकर सो जाएँ ।
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