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Kavita Kosh से
मैं तुम्हारे साथ हूँ
हर मोड़ पर संग-संग मुड़ा हूँ।
मैं तुम्हारे पाँव से
परछाइयाँ बनकर जुड़ा हूँ।
पंख पर बैठा तितलियों के
तुम्हारे संग उड़ा हूँ।
बोढ के वे क्षण, मुझे लगता
कि मैं ख़ुद से बड़ा हूँ।
इन झरोखों से लुटाता
उम्र का अनमोल सरमाया,
मैं दिनों की सीढ़ियाँ
चढ़ता हुआ ऊपर चला आया,
हाथ पकड़े वक़्त की
मीनार पर संग-संग खड़ा हूँ।
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