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|रचनाकार=शंभुनाथ सिंह
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::राजा से हाथी घोड़े
::मुझको क्या-क्या नहीं मिला
::मन ने सब-कुछ रखा संभाल।
सूरज से रेशमी लगाम,
पूरब से उड़नखटोले
पश्चिम से परियाँ गुमनाम।
::रातों से चांदी चाँदी की नाव
::दिन से मछुए वाला जाल!
बादल से झरती रुन-झुन
बिजली से उड़ते कंगन,
पुरवा से सन्दली महक
पछुवा से देह की छुवन।
::सुबहों से जुड़े हुए हाथ
::शामों से हिलती रूमाल!
नभ से अनदेखी ज़ंजीर
धरती से कसते बन्धन,
यौवन से गर्म सलाखें
जीवन से अनमांगा अनमाँगा रण।
::पुरखों से टूटी तलवार
::बरसों से ज़ंग लगी ढाल!
गलियों से मुर्दों की गंध
सड़कों से प्रेत का कुआँ,
घर से दानव का पिंजड़ा
द्वार से मसान का धुआँ!
::खिड़की से गूंगे गूँगे उत्तर
::देहरी से चीख़ते सवाल!
::मुझको क्या-क्या नहीं मिला
::मन मे सब-कुछ रखा संभाल!
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