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Kavita Kosh से
रोशनी के लिए जी रहा हूँ ।
एक अंधे अँधे कुएँ में पड़ा हूँ
पाँव पर किन्तु अपने खड़ा हूँ,
कह रहा मन कि क़द से कुएँ के