भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }} <poem> ये बेशुमार तन्हाईयां, शायद म…
{{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }}
<poem>
ये बेशुमार तन्हाईयां,
शायद मेरे ह्रिदय व मस्तिष्क की,
बंद खिड़कियां खोल दें,
और मैं कुछ ऐसा कर जाऊं,
लिख जाऊं कुछ अमर पंक्तियां,
जो संयोग के क्षणों में,
मैं न लिख पाई।
तुम्हारा विरह भी मुझे,
देता है असीम शक्ति,
पीड़ा के ऐसे ही क्षणों में तो
मैनें कई-कई सृजन किए हैं।
<poem>
<poem>
ये बेशुमार तन्हाईयां,
शायद मेरे ह्रिदय व मस्तिष्क की,
बंद खिड़कियां खोल दें,
और मैं कुछ ऐसा कर जाऊं,
लिख जाऊं कुछ अमर पंक्तियां,
जो संयोग के क्षणों में,
मैं न लिख पाई।
तुम्हारा विरह भी मुझे,
देता है असीम शक्ति,
पीड़ा के ऐसे ही क्षणों में तो
मैनें कई-कई सृजन किए हैं।
<poem>