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{{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }}
<poem>
६- मजबूरियों की आग में,
इतना झुलसी कि-
राख बन गई।
७- आज एक मजबूर माँ ने,
अपने तीन बच्चों सहित,
गहरे पानी में कूद कर,
आत्महत्या कर ली,
ताकि ज़िन्दगी के बाद भी,
उन्हें सुरक्षा दे सके।
८- कोई ऐसा सख्स नहीं,
जहां में,
जो कभी न कभी
मजबूर न हुआ हो।
९- मजबूरियों के मापदंड,
हर किसी के लिए,
अलग-अलग होते हैं।
१०- मजबूरियाँ
तब तक ही सहनीय हैं,
जब तक ज़िन्दगी का,
बलिदान न मांगें।
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६- मजबूरियों की आग में,
इतना झुलसी कि-
राख बन गई।
७- आज एक मजबूर माँ ने,
अपने तीन बच्चों सहित,
गहरे पानी में कूद कर,
आत्महत्या कर ली,
ताकि ज़िन्दगी के बाद भी,
उन्हें सुरक्षा दे सके।
८- कोई ऐसा सख्स नहीं,
जहां में,
जो कभी न कभी
मजबूर न हुआ हो।
९- मजबूरियों के मापदंड,
हर किसी के लिए,
अलग-अलग होते हैं।
१०- मजबूरियाँ
तब तक ही सहनीय हैं,
जब तक ज़िन्दगी का,
बलिदान न मांगें।
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