भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal‎}}‎
<poem>
ज़माना आ गया रुसवाइयों तक तुम नहीं आये आए ।जवानी आ गई तनहाइयों तक तुम नहीं आये आए ।।
धरा पर थम गई आँधी, गगन में काँपती बिजली,
घटाएँ आ गईं अमराइयों तक तुम नहीं आये आए
नदी के हाथ निर्झर की मिली पाती समंदर को,
सतह भी आ गई गहराइयों तक तुम नहीं आये आए
किसी को देखते ही आपका आभास होता है,
निगाहें आ गईं परछाइयों तक तुम नहीं आये आए
समापन हो गया नभ में सितारों की सभाओं का,
उदासी आ गई अंगड़ाइयों तक तुम नहीं आये आए
न शम्म'अ है न परवाने हैं ये क्या 'रंग' है महफ़िल,
कि मातम आ गया शहनाइयों तक तुम नहीं आये आए
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,629
edits