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रावण ओर मंदोदरी
'''( छंद संख्या 28 से 29 )'''
 
 
(27)
 
कह्यो मातु मातुल, बिभीषनहूँ बार-बार,
आँचरू पसार पिय! पायँ लै-लै हौं परी।
 
बिदित बिदेहपुर नाथ! भृगुनाथगति,
समय सयानी कीन्ही जैसी आइ गौं परी।
 
बायस, बिराध, खर, दूषन, कबंध, बालि,
बैर रघुबीरकें न पूरी काहूकी परी।।
 
कंत बीस लोयन बिलोकिए कुमंतफलु,
ख्याल लंका लाई कपि राँड़की-सी झोपरी।27।
 
(28)
राम सों सामु किएँ नितु है हितू,
कोमल काज न कीजिए टाँठे।
 
आपनि सूझि कहौं , पिय!
बूझिबे जोगु न ठाहरू, नाठे।।
 
नाथ! सुनी भृगुनाथकथा,
बलि बालि गए चलि बातके साँठे।
 
भाइ बिभीषनु जाइ मिल्यो,
प्रभु आइ परे सुनि सायर काँठे।28।
</poem>
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