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राक्षस बानर संग्राम
'''( छंद संख्या 30, 31 )''' (30) रोष्यो रन रावनु , बोलाए बीर बानइत, जानत जे रीति सब संजुग समाजकी। चली चतुरंग चमु, चपरि हने निसान, सेना सराहन जोग रातिचरराजकी। तुलसी बिलोकि कपि-भालु किलकत, ललकत लखि ज्यों कँगाल पातरी सुनाजकी। रामरूख निरखि हरष्यो हियँ हनूमानु, मानो खेलवार खोली सीसताज बाजकी।। (31) साजि कै सनाह -गजगाह सउछाह दल, महाबली धाए बीर जातुधान धीरके।। )'''तुलसी तमकि-ताकि भिरे भारी जुद्ध क्रु्््ुद्ध, सेनप सराहे निज निज भट भीरके। रूंडनके झुंड झूमि-झूमि झुकरे-से नाचैं, समर सुमार सूर मारैं रघुबीरके।31।
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