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{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कीर्ति चौधरी |संग्रह=’तीसरा सप्तक’ में शामिल रचनाएँ / कीर्ति चौधरी}} {{KKCatKavita‎}}करूंगी <poem>करूँगी प्रतीक्षा अभी ।  
दृष्टि उस सुदूर भविष्य पर टिका कर
 फिर करूंगी काम।करूँगी काम ।प्रश्न नहीं पूछूंगीपूछूँगी, जिज्ञासा अन्तहीन होती है
मेरे लिए काम जैसे
 जपने को एक नाम।नाम ।
मैं ही तो हूँ
 
जिसने उपवन में
 बीजों को बोया है।है ।
अंकुर के उगने से बढ़ने तक
 
फलने तक
 
धैर्य नहीं खोया है
 
एक-एक कोंपल की चाव से
 निहारी है बाट सदा।सदा ।
देखे हैं
 
शिशु की हथेली मसृण
 
हरित किसलय दल
 
कैसे बढ़ आते हैं।
 
दुर्बल कृश अंग लिए उपजे थे
 
वे ही परिपुष्ट बने
 झूम लहराते हैं।हैं ।
मैं ही तो हूँ
 
जिसने प्यार से सँवारी है
 
डाल-डाल
 आएंगी आएँगी कलियाँ 
फिर बड़े गझिन गुच्छों में
 
फूलेंगे फूल लाल
 करूंगी करूँगी प्रतीक्षा अभी 
पौधा है वर्तमान
हर दिन हर क्षण ।
हर दिन हर क्षण।  न्व नव कोंपल पल्लव समान 
हरियाए, लहराए,
 यत्न से सँवारूंगी।सँवारूँगी ।
आख़िर तो
 
बड़े गझिन गंध-युक्त गुच्छों-सा
आएगा भविष्य कभी ।
आएगा भविष्य कभी।  करूंगी करूँगी प्रतीक्षा अभी ।</poem>
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