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'''(लंकादहन-1 )'''
देखि ज्वालजालु, हाहाकारू दसकंघ सुनिबसन बटोरि बोरि-बोरि तेल तमीचर,
कह्यो धरो धरो, धाए बीर बलवान खोरि-खोरि धाइ आइ बाँधत लँगूर हैं।
लिएँ सूल-सेल, पास-परिध, प्रचंड दंड, भोजन सनीर, धीर धरें धनु तैसो कपि कौतुकी डेरात ढीले गात कै-बान हैं। ‘तुलसी ’ समिध सौंजकै, लंक जग्यकुंडु लखि, जातुधान पुंगीफल जव तिल धान है।
स्त्रुवा सो लँगूल लातके अधात सहै, बलमूल प्रतिकूल हबिजीमें कहै, कूर हैं।।
स्वाहा महा हाँकि हाँकि हुनैं हनुमान हैं।7। बाल किलकारी कै-कै, तारी दै-दै गारी देत,
पाछें लागे, बाजत निसान ढोल तूर हैं।।
गाज्यो कपि गाज ज्यों बालधी बढ़न लागी, बिराज्यो ज्वालजालजुतठौर -ठौर दीन्हीं आगी,
भाजे बीर धीर, अकुलाइ उठ्यो रावनो। बिंधकी दवारि कैधौं कोटिसत सूर हैं।3।
धावौं , धावौ, धरौ, सुनि धाए जातुधान धारि,
बारिधारा उलदै जलदु जौन सावनो।। लाइ-लाइ आगि भागे बालजाल जहाँ तहाँ,
लपट झपट झहराने, हहराने बात, लघु ह्वै निबुकि गिरि मेरूतें बिसाल भो।
भहराने भटकौतुकी कपीसु कुदि कनक-कँगूराँ चढ्यो, पर्यो प्रबल परावनो।। रावन-भवन चढ़ि ठाढ़ेा तेहि काल भो।।
ढकनि ढकेलि, पेलि सचिव चले लै ठेलि‘तुलसी’ विराज्यो ब्योम बालधी पसारि भारी,
नाथ! न चलैगो बलुदेखें हहरात भट, अनलु भयावनो।8। कालु सो कराल भो।।
तेजको निदानु मानेा कोटिक कृसानु-भानु,
बडो़ नख बिकराल बेषु देखि, सुनि सिंघनादु, मुखु तेसो रिस लाल भो।4।
उठ्यो मेघनादु, सबिषाद कहै रावनो।
बालसी बिसाल बिकराल, ज्वालजाल मानो ।  लंक लीलिबेको काल रसना पसारी हैं।  कैधों ब्योमबीधिका भरे हैं भूरि धूमकेतु,  बेग जित्यो मारूतबीररस बीर तरवारि सो उधारी है।  ‘तुलसी’ सुरेस-चापु, प्रताप मारतंड कोटिकैधों दामिनि-कलापु,
कालऊ करालताँ, बड़ाई जित्यो बावनो।। कैंधों चली मेरू तें कृसानु-सरि भारी है।
‘तुलसी’ सयाने देखें जातुधान पछिताने -जातुधानीं अकुलानी कहैं,
जाको ऐसो दूतुकाननु उजार्यो, सो तो साहेबु अबै आवनो।। अब नगरू प्रजारिहैं।5।
काहेको कुसल रोषें राम बामदेवहू की,
बिषम बलीसों बादि बैरको बढ़ावनो।9। जहाँ-तहाँ बुबुक बिलोकि बुबुकारी देत,
जरत निकेत, धावौ, धावौ लागी आगि रे।।
पानी!पानी! पानी! स्ब रानी अकुलानी कहैं, जाति हैं परानीकहाँ तातु-मातु, भ्रात-भगिनी, भामिनी-भाभी, गति जानी गजचालि है।
बसन बिसारै, मनिभूषन सँभारत न,ढोटा छोटे छोहरा अभागे भोंडे भागि रे।।  आनन सुखाने हाथी छोरौ, घोरा छोरौ, कहै महिष बृषभ छोरौ, क्योंहू कोऊ पालिहै।।
‘तुलसी’ मँदोवै मीजि हाथ छेरि छोरौ, धुनि माथ कहैसोवै सो जगावौ , जागि, जागि रे।।
काहूँ कान कियो न, मैं कह्यो केतो कालि है।
बापुरें बिभीषन पुकारि बार बार कह्यो‘तुलसी’ बिलोकि अकुलानी जातुधानीं कहैं,
बानरू बड़ी बलाइ घने घर घालिहै।10।बार-बार कह्यौं , प्रिय! क्पिसों न लागि रे।6।
</poem>
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