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औरतें / रवीन्द्र दास

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नया पृष्ठ: खूबसूरत किन्तु दरिद्र स्त्रियाँ कुढ़ती हैं <br /> बदसूरत औरत अमीर क…
खूबसूरत किन्तु दरिद्र स्त्रियाँ कुढ़ती हैं <br />
बदसूरत औरत अमीर क्यों है ! <br />
और बदसूरत अमीर स्त्रियाँ कोसती हैं <br />
खूबसूरत निर्धन औरतों को <br />
कि क्यों नागिन बन बलखाती फिरती हैं <br />
हमारी गिरस्ती खसोटने को। <br />
और चलती रहती है खींचतान <br />
और अजमाइश ताकतों की <br />
कि तभी बीच में खड़ा होता है कोई <br />
कला साधक <br />
जो बनाता है रास्ता , कहीं बीच का <br />
कला के कद्रदान <br />
देना शुरू करते हैं अनुदान <br />
जिससे चल पड़ती है दुकान <br />
जहाँ , <br />
अमीर गरीब <br />
सुन्दर बदसूरत <br />
स्त्री-पुरुष <br />
लिंग-अतीत आयोजकों से साधते हैं संपर्क <br />
पुरानी सड़कों की मरम्मत भी होती है <br />
नए रंग रोगन भी लगते हैं <br />
इस तरह शुरू होता है <br />
सिलसिला खुशहाली का <br />
निम्न मध्य वर्ग के शिक्षित -कुंठित मर्द <br />
ऐन मौके पर उठाता है मुद्दा <br />
नैतिकता का , <br />
मानव मूल्य के पतन का।
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