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'''( जानकी -मंगल पृष्ठ 22)'''
'''बारात की बिदाई -1'''
 
( छंद 161 से 168 तक)
 
करि करि बिनय कछुक दिन राखि बरातिन्ह।
जनक कीन्ह पहुनाई अगनित भाँतिन्ह।161।
 
प्रात बरात चलिहि सुनि भूपति भामिनि।
परि न बिरह बस नींद बीति गइ जामिनि।।
 
खगभर नगर नारि नर बिधिहि मनावहिं।
बार बार ससुरारि राम जेहि आवहिं। ।
 
सकल चलन के साज जनक साजत भए ।
भाइन्ह सहित राम तब भूप -भवन गए।।
 
सासु उतारि आरती करहिं निछावरि।
निरखि निरखि हियँ हरषहिं
 
सूरति करूना भरीं।
परिहरि सकुच सप्रेम पुलकि पायन्ह परीं।।
सीय सहित सब सुता सौंपि कर जोरहिं।
बार बार रघुनाथहि निरखि निहोरहिं।।
तात तजिय जनि छोह मया राखबि मन।
अनुचर जानब राउ सहित पुर परिजन।168।
 
(छंद-21)
 
जन जानि करब सनेह बलि, कहि दीन बचन सुनावहीं
अति प्रेम बारहिं बार रानी बालिकन्हि उर लावहीं।।
 
सिय चलत पुरजन नारि हय गय बिहँग मृग भए।।
सुनि बिनय सासु प्रबोधि तब रघुबंस मनि पितु पहिं गए।21।
'''(इति जानकी-मंगल पृष्ठ 22)'''
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