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|रचनाकार=हरे प्रकाश उपाध्याय
|संग्रह=खिलाड़ी दोस्त और अन्य कविताएँ / हरे प्रकाश उपाध्याय}}
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हमारी पीठ पर आपके शब्दों का बोझ
हमारी हथेलियों पर
न जाने कब तक रहेंगे
मिटेंगे तो न जाने कैसे दाग़ छोड़ेंगे
पर बार-बार हमें फटकारना
धोबी के पाट पर कपड़ों -सा फींचना-धोना
हम जान नहीं सके
अपने लिये लिए बार-बार
आपका परेशान होना
भरी हैं आपकी हिदायतें
आपके हस्ताक्षर सहित
नहीं मिटेंगे इस जनम में
और बिक जाएँगी बनिये की दुकान पर
पर आपके हस्ताक्षरों पर बैठकर
रसोई-रसोई पहुँचेगा
हिदायतें भर -बाज़ार घूमेंगी
इस सड़क से उस सड़क
क्लास रूप -रूम में तेज तेज़ बोली आपकी बातें
हवा में घुली हैं मास्टर साहब
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