भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूली / रेशमा हिंगोरानी

1,491 bytes added, 12:55, 18 मई 2011
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी |संग्रह= }} {{KKCatNazm}} <poem> सूली पर ले जा…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी
|संग्रह=
}}
{{KKCatNazm}}
<poem>
सूली पर ले जाने वाले
और नहीं मेरे अपने थे,

मेरे प्रियतम के खूनी भी
और नहीं उसके अपने थे,

हमने तो बस प्यार किया था
कब जाती पर वार किया था,

पँचायत को बात न भाई
पल में निर्णय दिया सुनाई,

"इन दोनों को मरना होगा
प्रायशचित तो करना होगा"

लोग सितारों तक जा पहुँचें
चाँद को छूकर लौट भी आएँ,

पर नक्षत्र, हस्त रेखाएँ
अपनी किस्मत इन्हीं के हाथों...

रोज़ मरेंगे, रोज़ जिएँगे
रोज़ कटेंगे, रोज़ लड़ेंगे,

किसने माना एक हैं हम सब
किसने जाना एक हैं हम सब

हमको तोड़ने वाले भी तो
गैर कहाँ - ये सब अपने हैं,

मज़हब जाती बाँट न पाए
अजब अजब देखे सपने हैं...
</poem>