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इतिहासविदों एवं पुरातत्वशास्त्रियों के अनुसार सभी प्राचीन महान सभ्यताएं महान नदियों के किनारे ही विकसित हुईं। उन्हीं नदी घाटियों के किनारे बसे कबीलों एवं सभ्यताओं के नाम भी उन्हीं नदियों के नामों पर पड़े। सिन्धु घाटी सभ्यता, सरस्वती घाटी सभ्यता। कालांतर में उनके किनारे बसने वाले लोगों के नाम, गोत्र इत्यादि भी उसी के अनुसार प्रचलित हुए। इसी प्रकार प्राचीन सरस्वती नदी के किनारे बसने वाले भी सारस्वत कहलाये। स्व. रावत सारस्वत के पूर्वज भी प्राचीन काल में कश्मीर (प्राचीन सरस्वती नदी के उदगम् स्थल) से विस्थापित होकर पहले पंजाब, हरियाणा तथा बाद में राजस्थान के शेखावाटी भू भाग में आकर बसे। उन्हीं पूर्वजों में से एक परिवार बिसाऊ (झुंझुनूं) में बसा। इसी परिवार मंे एक पूर्वज केदारनाथ सारस्वत अपने रिश्ते के दूसरे परिवार जो चूरू में बसा था के गोद आए। श्री केदारनाथजी के सुपुत्र श्री महादेवप्रसाद हुए जो बीकानेर रियासत में थानेदार रहे। श्री महादेवप्रसाद के यहां पांच पुत्र हुए।
जन्म :- श्री रावत सारस्वत का जन्म २२ जनवरी, १९२१ को चूरू में एक साधारण ब्राघ्ण परिवार में पिता श्री हनुमानप्रसाद सारस्वत तथा माता बनारसी देवी के यहां हुआ। अपने ८ बहन भाईयों (४ बहन तथा ४ भाई) में श्री रावत सारस्वत सबसे बड़े थे। वर्तमान में इस पीढ़ी में कोई भी भाई या बहिन विद्यमान नहीं है।
शिक्षा :- प्रारम्भिक शिक्षा चूरू में ही हुई। पढ़ाई में होशियार होने के कारण दादा महादेवप्रसाद के वे विशेष प्रिय रहे। परिवार में ताऊ श्री बालचन्द जो एम.ए. बी.टी. तक शिक्षित थे तथा चूरू लोहिया कॉलेज में कार्यरत् रहे, उनके अलावा चाचा श्री मुरलीधर सारस्वत एम.ए. साहित्यरत्न थे तथा ऋषिकुल चूरू में कार्यरत रहे। पिता तथा बाकी दो चाचा कोई विशेष शिक्षा अर्जित नहीं कर पाये। श्री रावत सारस्वत ने आठवीं तक बोर्ड में प्रथम स्थान प्राप्त कर छात्रवृति प्राप्त करने का जो सिलसिला शुरु किया उसे बी.ए. तक कायम रखा।
१. दसवी सन् १९३८ बीकानेर बोर्ड (पूरे स्टेट में फर्स्ट क्लास)
२. बी.ए. सन् १९४१ (आगरा विश्वविद्यालय - प्रथम श्रेणी)
३. एम.ए. सन् १९४७ (नागपुर विश्वविद्यालय - प्रथम श्रेणी)
४. एल.एल.बी. १९४९ (राजस्थान विश्वविद्यालय - प्रथम श्रेणी)
विवाह :- सन् १९४१ में बी.ए. तक शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त, परिवार वालों के आग्रह पर आपका विवाह सिंघाना (खेतड़ी तहसील) के सागरमल जी वैद्य की पुत्री कलावती देवी के साथ १९४२ में सम्पन्न हुआ।
१९४४ में प्रथम पुत्र सुधीर सारस्वत
१९४७ में पुत्री मंजूश्री
१९५१ में पुत्री मधु
१९५३ में पुत्र शेखर सारस्वत
परिवार में २ पुत्र तथा ३ पुत्रियां (ऊपर वर्णित) हुई। बड़ा पुत्र सिविल इन्जीनियर (सन् २००० में सेवानिवृत) तथा छोटा पुत्र (एम.एस.सी. भूगर्भ विज्ञान - बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय) वर्तमान में सेवानिवृत तथा तीनों बहिनें विवाहित जीवन व्यतीत कर रही हैं।
कार्य एवं पद :-
१९४१ से १९४४ तक अनूप संस्कृत लाईब्रेरी, बीकानेर में पुराने संस्कृत, डिंगल, पिंगल एवं प्राकृत के ग्रंन्थों का कैटेलॉग बनाने मं सहायक लाईब्रेरियन के रूप में।
१९४५ से १९५२ - पत्रकार एवं प्रेस संचालक के रूप में जयपुर में ।
(साधना प्रेस तथा राजपूत प्रेस)
लिखित-प्रकाशित/अप्रकाशित पुस्तकों की सूची -
१. मौलिक
(प्रकाशित) -
(४) पृथ्वीराज राठौड़ (भारतीय इतिहास के निर्माता) सन् १९८४
(५) आईडेनटिटी ऑफ रावल्स सन् १९८२
(अप्रकाशित)
(१) अणगाया गीत
(३) आज का राजस्थानी साहित्य
(४) संक्षिप्त राजस्थानी शब्द कोश।
२. अनुवादित
(प्रकाशित) -
(२) बादळी (चन्द्रसिंह के राजस्थानी काव्य का हिन्दी अनुवाद)
(३) जफरनामो - (गुरु गोविन्द सिंह के फारसी काव्य का अनुवाद १९७५)
(अप्रकाशित)
(१) ऋग्वेद की ऋचाएं
(२) पंचासिका (पुराना संस्कृत ग्रन्थ) विल्हण द्वारा रचित
(३) गाथा सतसई (प्राचीन प्राकृत ग्रंथ)
३. संपादन
(प्रकाशित)
(१४) डिंगलगीत (प्राचीन पद्य)
(१५) प्राचीन राजस्थानी कवि।
४. अंग्रेजी
(प्रकाशित)
(३) सोसियोइकोनोमिक लाईफ इन मेडिवल राजस्थान एज डेपिक्टेड इन राजस्थान प्रोस कोनीकल्स
(४) कान्हड़ दे प्रबन्ध- ए कल्चरल स्टडी
५. कविताएं
(प्रकाशित)
(६) ओळ्यूंड़ी
(७) परमातम री किरण
६. डिंगलगीत
(प्रकाशित)
(२) सुमनेश जोशी रो मरसियो
(३) अगरचन्द नाहटा रो मरसियो।
७. नई कविताएं
(प्रकाशित)
(१) घूंघट
(२) जोधा जाग
८. आत्मबोध :- पीड़।
इसके अलावा बहुत से फुटकर अप्रकाशित लेख इत्यादि भी हैं।
कार्यभार-दायित्व निर्वहन-
संपादक :- मरुवाणी - राजस्थानी भाषा की प्रथम अग्रणी पत्रिका (१९५३)
सदस्य राजस्थानी विषय कमेटी :- जोधपुर विश्वविद्यालय, जोधपुर।
सदस्य (सलाहकार/संपादक मंडल) :- वरदा, मरुश्री, बागड़ संदेश, विश्वम्भरा।
विभिन्न सेमीनारों तथा सिंपोजियमों में उनके द्वारा पढ़े गये पेपर :-
१. ''ट्रांस्लेटर्स वर्कसोप`` ऑर्गेनाईज्ड एट भोपाल बाइ साहित्या एकेडमी, न्यू देलही।
४. राजस्थान रिसर्च सेमीनार एट उदयपुर।
५. कॉण्ट्रिब्यूटेड आर्टिकल्स इन ''कोटेम्पोरेरी इन्डियन लिट्रेचर`` ऑफ केरला साहित्य एकेडमी, राजस्थान गजतीर।
विभिन्न पत्रिकाएं एवं अखबार जिनमें उनके लेख छपे :-
१. भारतीय साहित्य - नई दिल्ली अकादमी द्वारा प्रकाशित।
१५. बिणजारो - पिलानी।
इसके अलावा बहुत-सी पत्रिकाओं के विशेषांकों एवं अन्य जनरलों में भी अनेक लेख प्रकाशित हुए।
पुरस्कार -
(१) राजस्थानी भाषा और साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए ''विशिष्ट साहित्यकार`` पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा सन् १९७७ में।
(३) उपराष्टघ्पति डॉ. शंकर दयाल शर्मा द्वारा दिल्ली में ''राजस्थान रत्नाकर`` पुरस्कार १९८९ में।
(४) 'बखत रै परवाण` पुस्तक पर मरणोपरान्त राजस्थान साहित्य संगम अकादमी, बीकानेर द्वारा पुरस्कार सन् १९९०
स्वर्गवास-
श्री रावत सारस्वत का स्वर्गवास १६ दिसम्बर, १९८९ को हुआ।