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शाम तक प्रतीक्षा थी
बादल छोड़ देंगे सूरज को
पर पता ही न चला
कब डूब गया सूरज
जिंदगी का सच ही यही है
नहीं हो पाता इसमें
पर कभी-कभी हो भी जाता है
बहुत कुछ यहाँ
मसलन,
मोहनदास करमचन्द गाँधी का राष्ट्रपिता बनना
चन्द्रयान का चन्द्रमा की कक्षा में स्थापित होना,
आदि।
क्यों नहीं होता आखिरआख़िर इस देश में लोगों का समय से दफ्तरो दफ़्तरो में पहुँचना
तय समय तक कुरसी पर बैठ
अपना काम पूरा करना
बच्चों की पढ़ाई के लिए
कोचिंग की जरूरत ज़रूरत न पड़ना, कर्णधारों का संयत बोलना
लोगों का नियम तोड़ते रहने से बचना
देश का पेट पालने वाले किसानों का
खाली पेट सोना आदि। आदि ।
शायद हमारी इच्छाशक्ति के अभाव में ही
हमारे देश का सूरज
यूँ ही डूबता रहता है असमय
हमारे द्वारा ही सृजित कुहासे में अचानक चमक उठने की नित्याशा के बीच।बीच ।
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