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अँधेरे में
भूख से दर्द और दुख से बिलबिलाते
जेठ की चिलचिलाती धूप में हम
खनते रहते हैं कुआँ
आरिष में काँपते-थरथराते
और बचाते हैं पानी
राजा खून की नदी बहाता रहता है
हमारे बच्चे अक्सर
हम खोजते हैं बकरी का दूध
हम गीत प्रीत का गाना चाहते हैं