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ऊब जाओ यदि कहीं ससुराल में
एक दिन के वास्ते ही गांव गाँव आना।
लोग कहते हैं तुम्हारे शहर में
हो गये दंगे अचानक ईद को।को ।
हाल कैसे हैं तुम्हारे क्या पता
रात भर तरसा विकल मैं दीद को।को । 
और, वैसे ही सरल है आजकल
आदमी का ख़ून गलियों में बहाना।बहाना ।  शहर के ऊँचे मकानों के तले रेंगते कीड़े सरीख़े लोग । औ’ उगलते हैं विषैला धुआँ ये निरन्तर दानवी उद्योग ।
शहर के ऊंचे मकानों के तले
रेंगते कीड़े सरीख़े लोग।
औ’ उगलते हैं विषैला धुंआ
ये निरन्तर दानवी उद्योग।
छटपटाती चेतना होगी तुम्हारी
ढ़ूंढ़्ने ढ़ूंढ़ने को मुक्त -सा कोई ठिकाना।ठिकाना ।
बाग़ में फूले कदम्बों के तले
झूलने की लालसा होगी तुम्हारी।तुम्हारी । पांव पाँव लटका बैठ मड़वे के किनारे भूल जाओगी शहर की ऊब सारी।सारी । 
बैठकर चट्टान पर निर्झर तले
मुक्त क्रीड़ामग्न क्रीड़ा-मग्न होकर खिलखिलाना।खिलखिलाना ।
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