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जो पत्थर बोलता
 
तो नहीं गूंजती
 
आकाश तक चीखें
 
नहीं होता कोई पैमाना
 
ऊँचाई और गहराई के बीच,
 
नहीं जलती अयोध्या
 
और न टूटती बाबरी मस्जिद
 
जो पत्थर बोलता
 
तो नहीं मरती संवेदना
 
जीवित रहता प्यार
 
मौत के बाद भी सदियों तक
 
जो पत्थर बोलता
 
तो नहीं होती आत्महत्याएं
 
आर्थिक बदहाली व भूख के कारण
 
जो पत्थर बोलता
 
तो नहीं बढ़ता आतंकवाद,
 
नहीं जलती सारी दुनिया
 
धू-धू कर नुफरत की आग में
 
जो पत्थर बोलता
 
तो हमारा और तुम्हारा
 
अलग-अलग नहीं होता धर्म</poem>