भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
उस आख़िरी लम्हे का मुंतज़िर हूँ मैं
कहते हैं – ‘इतिहास ख़ुद को दोहराता है’।
<Poem>