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सच / हरीश करमचंदाणी

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नया पृष्ठ: <poem>सच का साथ देने और सच का सामना करने में फर्क था साथ देना खतरे उठान…
<poem>सच का साथ देने
और सच का सामना करने में फर्क था
साथ देना खतरे उठाना था
बहुतकुछ गवाना था
और सच का सामना करना
कुछ कुछ गवाना था
बदले में बहुत कुछ पाना भी था
एक की कीमत बाज़ार में कुछ न थी
दूसरा खुद बाज़ार था </poem>
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