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Kavita Kosh से
कच्चे सपनों को
बाँट रही दुख-दर्द ग़रीबी
मूँगफली बादाम हो गई
सुरा हुई सस्ती ।
धन-कुबेर को अपने घर में
बैठी बन्द किए
मूक दिशाएँ देख रही बस हैं
अपने होठ सिए
कार विदेशी, ऊँची कोठी