भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सदस्य:Vidhu yadav

1,898 bytes added, 08:14, 30 मई 2011
कभी फुर्सत मिले तो चलना साथ हमारे !
''' कभी फुर्सत मिले तो चलना साथ हमारे !

तुमको भी ले चलेंगे अपने बचपन के गलियारे !!

नन्ही नन्ही आँखों के सपने ,

बात बात पे आंसू छलके ,

माँ का प्यार से भरना बांहों में ,

फिर रोते रोते हँस देते ,

कभी फुर्सत मिले तो चलना साथ हमारे !

तुमको भी ले चलेंगे अपने बचपन के गलियारे !

पल पल के वो दोस्त हमारे ,

पल भर के वो गुस्से ,

मुहं चिडाकर बात न करना ,

थोड़ी देर में फिर हुडदंगे ,

खेल खेल में लड़ते लड़ते ,

शाम तलक सब भुलये ,

कभी फुर्सत मिले तो चलना साथ हमारे !

तुमको भी ले चलेंगे अपने बचपन के गलियारे !!

मस्त हुए सब अपनी ही धुन में ,

जाने क्या क्या करते ,

कभी तितलियों के पीछे दोड़े ,

कभी किसी के पीछे ,

न जाने क्या मिलता था उनमे ,

थे जो नासमझी के सपने ,

कभी फुर्सत मिले तो चलना साथ हमारे !

तुमको भी ले चलेंगे अपने बचपन के गलियारे !!''
6
edits