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हज़ारों ख़्वाहिशें दिल में अमन के वास्ते लेकिन
दुआ का हाथ जाने क्यों बहुत मायूस लगता है
मज़ा आता है अक्सर यूं बुझाने में चिरागों चिराग़ों को
हवा को क्या पता कितना जिगर का खून लगता है
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