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फ़िक्र-ए-फर्दा<ref>कल की चिन्ता</ref> न करूँ, महव<ref>खोया रहना</ref>-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
नाले बुलबुल की सुनूँ और हमअतंगोश रहूँ
जुरत-आमोज़ मेरी ताब-ए-सुख़न है मुझको
थी तो मौजूद अज़ल से ही तेरी ज़ात-ए-क़दीम
फूल था ज़ेब-ए-चमन, पर न परेशान थी शमीम <ref> सुगंध</ref> ।
शर्त-ए-इंसाफ़ है ऐ साहिब-ए-अल्ताफ़-ए-अमीं ।
बू-ए-गुल फैलती किस तरह जो होती न नसीम <ref> पवन </ref>।
हमको जमहीयत-ए-ख़ातिर ये परेशानी थी
बात जो बिगड़ी हुई थी वो बनाई किसने ?
थे हमीं एक तेरे मार मअर का आराओं में ।
खुश्कियों में कभी लड़ते, कभी दरियाओं में ।
दी अज़ानें कभी योरोप के कलीशाओं<ref>चर्च, गिरिजाघर</ref> में ।
कौम अपनी जो ज़रोमाल-ए-जहाँ पर मरती
बुत फरोशी के तेवर एवज़ बुत-शिकनी क्यों करती ?
तेरे ख़ंज़र लिए पैग़ाम सुनाया हमने ।
तू ही कह दे के, उखाड़ा दर-ए-ख़ैबर<ref>उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान में पेशावर के पास का दर्रा जिससे होकर कई विदेशी आक्रांता भारत आए; सिकंदर, बाबर और नादिर शाह इनमें से कुछ उल्लेखनीय नाम हैं ।</ref> किसने?
शहर कैसर<ref>सीज़र का अरबी नाम, सीज़र रोम के शासक की उपाधि होती थी</ref> का जो था, उसको किया सर किसने?
तोड़े मख़्लूक ख़ुदाबन्दों के पैकर<ref>आकृति, स्वरूप</ref> किसने?
किसकी तक़दीर से दुनिया तेरी बेदार हुई ?
किसकी हैमत से सनम <ref>मूर्तियाँ </ref> सहमे हुए रहते थे ?
मुँह के बल गिरके 'हु अल्लाह-ओ-अहद' कहते थे ।
आ गया ऐन लड़ाई में अगर वक़्त-ए-नमाज़
हिब्ला रूहों के ज़मीं बोश हुई क़ौम-ए-हिजाज़ ।
एक ही सम्त में खड़े हो गए महमूद -ओ- अयाज़<ref> सुत्लान महमूद ग़ज़नी का एक ग़ुलाम अयाज़ नाम से था जिसकी बन्दगी से ख़ुश होकर सुल्तान ने उसे शाह का दर्जा दिया था और लाहौर को सन् १०२१ में बड़ी मुश्किलों से जीतने के बाद, उसे वहाँ का राजा बनाया था । </ref>
न कोई बन्दा रहा, और न कोई बन्दा नवाज़ ।
बन्दा ओ साहिब ओ मोहताज़ ओ ग़नी <ref> धनाढ्य, संपन्न </ref>एक हुए
तेरी सरकार में पहुँचे तो सभी एक हुए ।
महफिल-ए-कौन-ओ मकामे सहर-ओ-शाम फ़िरे
महल-ए-तौहीद को लेकर सिफ़त-ए-जाम फिरे ।
कोह-में दश्त <ref> रेत, रेगिस्तान </ref> में लेकर तेरा पैग़ाम फिरे
और मालूम है तुझको कभी नाकाम फिरे ?
सफ़ा-ए-दहर से क़ातिल को मिटाया हमने
दौर-ए-इंसा को ग़ुलामी से छुड़ाया हमने ।
तेरे काबों को जबीनों ज़बीनों <ref> भौंह </ref>पे बसाया हमने
तेरे क़ुरान को सीनों से लगाया हमने ।