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Kavita Kosh से
हमनवा<ref> साथी</ref> मैं भी कोई गुल हूँ के ख़ामोश रहूँ ।
जुरत-आमोज़ <ref>साहस सिखाने वाला</ref> मेरी ताब-ए-सुख़न <ref>बातों का तेज</ref> है मुझको
शिकवा अल्लाह से ख़ाकम बदहन है मुझको
आ गया ऐन लड़ाई में अगर वक़्त-ए-नमाज़
क़िब्ला <ref>नमाज अता करने की दिशा, भारत में पश्चिम की तरफ़</ref> रूहों के ज़मीं बोस हुई क़ौम-ए-हिजाज़ ।एक ही सम्त में खड़े हो गए महमूद -ओ- अयाज़ <ref> सुत्लान अयाज़ नाम का सुल्तान महमूद ग़ज़नी का एक ग़ुलाम अयाज़ नाम का था जिसकी बन्दगी से ख़ुश होकर सुल्तान ने उसे शाह का दर्जा दिया था और लाहौर को सन् १०२१ में बड़ी मुश्किलों से जीतने के बाद, उसे वहाँ का राजा बनाया था । </ref>
न कोई बन्दा रहा, और न कोई बन्दा नवाज़ ।
तुझकों छोड़ा कि रसूल-ए-अरबी को छोड़ा
बुतगरी पेशा किया, बुतशिकनी को छोड़ा ?
इश्क को, इश्क़ की आशुफ़्तासरी <ref>रोमांच, पुलक</ref> को छोड़ारस्म-ए-सलमानोसलमान-कुवैशओ-उवैश-ए-करनी क़रनी को छोड़ा?
आग तपती सी सीनों में दबी रखते हैं
इश्क़ की ख़ैर, वो पहली सी अदा भी न सही
ज्यादा पैमाई-ए-तस्लीम-ओ-रिज़ा भी न सही ।
मुज़्तरिब <ref>बेचैन</ref> दिल सिफ़त-ए-ख़िबलानुमा क़िबलानुमा भी न सही
और पाबंदी ए आईन-ए-वफ़ा भी न सही ।
कभी हमसे कभी ग़ैरों से शनासाई <ref>अपना, जुड़ा</ref> है
बात कहने की नहीं, तू भी तो हरजाई है ।