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और बेचारों मुसलमानों को फ़कत वाबा-ए-हुज़ूर ।
अब वो अल्ताफ़refअल्ताफ़<ref>दया </ref> नहीं, हम पे इनायात<ref> मेहरबानी </ref> नहीं
बात ये क्या है कि पहली सी मुदारात नहीं ?