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17:57, 9 जून 2011 उसके पहलू से लग के चलते हैं
हम कहीं टालने से टलते हैं
मै उसी तरह तो बहलता हूँ
और सब जिस तरह बहलतें हैं
वो है जान अब हर एक महफ़िल की
हम भी अब घर से कम निअक्लते हैं
क्या तकल्लुफ्फ़ करें ये कहने में
जो भी खुश है हम उससे जलते हैं