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तेरे दीवाने भी है मुंतज़र-ए-हू बैठे ।
अपने परवानों को फ़िर ज़ौक-ए-ख़ुदअफ़रोज़ी <ref>खुद को जलाने का मज़ा</ref> दे ।
बर्के दैरीना को फ़रमान-ए-जिगर सोज़ी दे ।
तूर मुज्तर हैं उसी आग में जलने के लिए ।
मुश्किलें उम्मत-ए-मरदूम <ref>लोगों की उम्मत</ref> की आसां कर दे ।
नूर-ए-बेमायां को अंदोश-ए-सुलेमां कर दे ।
इनके नायाब-ए-मुहब्बत को फ़िर अरज़ां कर दे