भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
961 bytes added,
08:04, 11 जून 2011
DIL KE SURKH DEEWARO PAR CHUP-CHAP KALAM JAB CHALTI HAI,कही कोई तो रास्ता कही जो जाता होगाESA LAGTA HAI DHADKAN AB MASHOOQ SE BANTE KARTI HAIमाना मंजिल पता नहीं कही आइना होगा युही नहीं थी उसके चहरे पे उदाशी इतनी जरुर वो कही किसी हादशे से गुजरा होगा गमो का बोझ उठाये तपती रेत पे चलना ...तुम्ही कहो इससे बड़ा क्या होसला होगा यक़ीनन में बखुदी में भी पहचान लूँगा तुझे जब कभी कही मेरा तुझसे सामना होगा में जेसा भी हू बेअदब बेतमीज ठीक हू ऊपर वाला मेरा हिसाब भी रखता होगा माना मंजिल पता नहीं कही आइना होगा अनीता मलिक .