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Kavita Kosh से
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आपकी प्रकाशित क्रतियों में ‘अंधड़ में दूब’(2000) तथा ‘इस आखेटक समय में’ (2010) शीर्षक से दो कविता संग्रह प्रकाशित हुये हैं । आपकी पद्य रचनाओं के संबंध में चर्चित साहित्यकार श्री विभूति नारायण राय ने लिखा हैः- ‘‘ ....हिंदी कविता में गीत पिछले कुछ दशकों से हाशिये पर ढकेल दिये गये हैं। उन्हे गंभीर रचनाकर्म की श्रेणी से निकालकर कवि सम्मेलनो में मंचों पर गलेबाजी का माध्यम मात्र समझा जाने लगा है। ऐसे में रविशंकर पाण्डेय जैसे गीतकार कवि एक नयी आश्वस्ति की तरह हमारे सामने आते हैं। शास्त्रीय काव्यानुशासन से लैस रविशंकर लोक कवि हैं। उनके गीतों में बुन्देलखंड की धरती सीझती है।.......इनकी रचनायें सिर्फ इनकी रचनात्मक सामर्थ्य के बारे में आश्वस्त नहीं करतीं बल्कि हिंदी गीत परंपरा पर रूक कर सोचने को आमंत्रित करती हैं।....’’ अनामिका प्रकाशन इलाहाबाद से प्रकाशित इनके दूसरे कविता संग्रह के प्रकाशन पर सर्वश्री स्वप्निल श्रीवास्तव जी ने लिखा हैः- ‘‘ .....रविशंकर पाण्डेय गीत के अपवाद है। उन्होंने गीतों के परम्परागत ढाँचे को तोड़कर अभिव्यक्ति के खतरे उठाये हैं, उन्होंने अपने ही बनाये ढ़ांचे को तोड़कर अतिक्रमण किया है, उन्होंने गीतों को प्रेम, अवसाद, मौसम तक सीमित न करके उसे आज के निर्मम यथार्थ और आम आदमी के दुःख-सुख और संघर्ष के साथ जोड़ा है। मनुष्य की बिडम्बनायें भी उनके गीतों का वर्ण्य विषय हैं।... श्री पाण्डेय की कविताओं में वर्तमान राजनैतिक वातावरण इस प्रकार चिन्हित होता हैः- संसद तो खो गयी बहस में चौपालें अफवाहों में , दिल्ली खोने केा आतुर है गोरी-गोरी बाहों में, जन-गण-मन अधिनायक वाली यह तस्वीर अधूरी है। यह श्री पाण्डेय जी की क्षमता है कि महत्वपूर्ण राजकीय अधिकारी होने के बावजूद विकास के घोड़े की गति को बेबाकी से प्रदर्शित कर सके हैंः- सरपट दौड़ रहे गाँवों में ये कागज के घोडे़, अश्वमेघ के लिए न जाने किस राजा ने छोडे। और राम भरोसे के खातिर भी संविधान में अनुच्छेद है, भूल चूक लेनी देनी केा क्षमा याचना और खेद है। ’’ शायद इसीलिये श्रीयुत स्वप्निल श्रीवास्तव ने इन्हेे वैचारिक रूप से दृढ़ कवि की संज्ञा दी है। श्री पाण्डेय स्पष्टवादी और बेधड़क लहजे में अपनी बात कहते हैं।इसीलिये श्री स्वप्निल श्रीवास्तव ने लिखा है कि रविशंकर पाण्डेय हिंदी के प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल की धरती के कवि हैं । इनको पढ़ते हुये कई अवसरों पर यह आभास होता है कि जैसे हम केदारनाथ अग्रवाल जी को पढ़ रहे हैं। वही किसानों की लाचारी, श्रमिकों का शोषण, मानवमूल्यों का हृास तथा भ्रष्ट शासन के प्रति तीव्र विरोध के स्वर श्री पाण्डेय की रचनाओं में भी दृष्टिगोचर होता है जैसा दशकों पूर्व केदारनाथ अग्रवाल के कविताओं में व्यक्त हुआ था। ( ‘हे मेरी तुम’ संग्रह में पूंजीवादी व्यवस्था के प्रति केदारनाथ अग्रवाल जी के उद्गार) डंकमार संसार न बदला प्राणहीन पतझार न बदला बदला शासन, देश न बदला राजतंत्र का भेष न बदला, भाव बोध उन्मेष न बदला, हाड़-तोड़ भू भार न बदला कैसे जियें? यही है मसला नाचे कोैन बजाये तबला? ( ‘इस आखेटक समय में’ संग्रह में गिरती साख के प्रति कवि डा0 रविशंकर पाण्डेय के उद्गार) वैसे तो बाहर दिखने में मौसम लगता खुशगवार है, लेकिन अन्दर घुटन बहुत है घटाटोप है अंधकार है, सब कुछ बदला पर मौसम का बदला हुआ मिजाज नहीं है! पुस्तक वार्ता के नवंबर-दिसंबर 2010 अंक में छपी इनके दूसरे कविता संग्रह की समीक्षा में समीक्षाकार हितेश कुमार सिंह द्वारा इस संग्रह को ‘‘ भ्ष्ट एवं निकम्मी व्यवस्था के प्रति कवि का तीव्र एवं व्यंग्यात्मक विरोध की’’ संज्ञा दी गयी है। आपकी प्रकाशित गद्य रचनाओं में लोक विज्ञान की पुस्तके ‘हम और हमारा पर्यावरण’ ‘प्रदूषण हमारे आसपास’, ‘मिट्टी को उपजाऊ कैसे बनायें?’, ‘फसलों की खुराक’ , तथा ‘पर्यावरण चिंतन ’ प्रमुख हैं जो चर्चित और पुरस्कृत हो चुकी हैं। आपकी पुस्तक ‘हम और हमारा पर्यावरण’ पर गृह-मंत्रालय राजभाषा विभाग द्वारा वर्ष 2003 में राजभाषा पुरस्कार प्राप्त हुआ ।इफको संस्था नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2004 में आपको हिंदी सेवा सम्मान प्रदान किया गया। राज्य कर्मचारी साहित्य-परिषद लखनऊ द्वारा वर्ष 2009 में आपको ‘साहित्य गौरव सम्मान’ और सम्मान ’ प्रदान किया गया। राज्य कर्मचारी साहित्य परिषद लखनऊ द्वारा वर्ष 2010 में ‘सुमित्रानंदन आपको ‘सुमित्रा नंदन पंत सम्मान’ सम्मान ’ प्रदान किया गया। अपका संपर्क सूत्र है- 3/29 विराम खण्ड , गोमती नगर, लखनऊ, 226010 दूरभाष संख्या 0522 2303329, मोबाइल न0 9415799625 आपका ई मेल पता है drravipcs@gmail
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