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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }} <poem> १-कल यह पेड़ हरे परिधान में झ…
{{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }}
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१-कल यह पेड़
हरे परिधान में झूमता था
आज लाल परिधान में
खिलखिला रहा है ,
कल इसके परिधान
पीले होकर
उतर जाएंगे
और पेड़ नग्न होकर
शर्मसार हो रहा होगा ।

२-देखो-देखो यह दरख़्त
कितना पीला पड़ गया है?
इस भय से कि कल वह
वस्त्रहीन हो जायेगा।

३- प्रकृति भी परिधान
पहनती है,सजती-संवरती है
प्रतिकूल परिस्थितियों में जब
उसके परिधान उतर जाते हैं
तब वह भी ज़ार-ज़ार रोती है।

४-यहाँ के दरख़्त भी
बहुत खुद्दार हैं
अपनी विपदा पर
किसी के आगे
हाथ नहीं फैलाते।

५- यहाँ पर आकाश
झर-झर झरता है,
और धरा से लिपट,
श्वेत चादर ओढ़
सुकून से सो जाता है।
<poem>
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