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Kavita Kosh से
कभी तो यह न हुआ आके दो घड़ी मिल जायँ
कहा कि अब न सहेंगे तो हँसके बोल उठे
'सही है, खूब ख़ूब है, सहते हैं आप, क्या कहिए!'
रहें जो चुप तो वे देते हैं छेड़, 'चुप क्यों हैं!'