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Kavita Kosh से
क्या आपकी नज़र में हैं फिर गुलाब फूले!
हर फूल में उन्हीं की उन्हींकी रंगत मिली है मुझको
जैसे कि बाग़ भर में हैं फिर गुलाब फूले
बेकार लिख गए हैं ख़त में हम उनको इतना
लिखना था मुख्तसर मुख़्तसर में --हैं फिर गुलाब फूले
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