भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
यों तो रंगों की वो दुनिया ही छोड़ ही हमने
चोट एक प्यार की ताजा ताज़ा ही छोड़ ही हमने
सिर्फ आँचल के पकड़ लेने से नाराज़ थे आप!
अब तो खुश ख़ुश हैं कि ये दुनिया ही छोड़ ही हमने
आप क्यों देखके आईना मुँह फिरा बैठे!
क्या हुआ फूल जो होठों से चुन लिए दो-चार
और खुशबू ख़ुशबू तेरी ताज़ा ही छोड़ दी हमने
पूछा उनसे जो किसीने कभी, 'कैसे हैं गुलाब?'