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यों तो रंगों की वो दुनिया ही छोड़ ही हमने
चोट एक प्यार की ताजा ताज़ा ही छोड़ ही हमने
सिर्फ आँचल के पकड़ लेने से नाराज़ थे आप!
अब तो खुश ख़ुश हैं कि ये दुनिया ही छोड़ ही हमने
आप क्यों देखके आईना मुँह फिरा बैठे!
क्या हुआ फूल जो होठों से चुन लिए दो-चार
और खुशबू ख़ुशबू तेरी ताज़ा ही छोड़ दी हमने
पूछा उनसे जो किसीने कभी, 'कैसे हैं गुलाब?'
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