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{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / गुलाब खंडेलवाल
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<poem>
ख्वाब समझें कि वाक़या समझें
तू ही बतला कि तुझको क्या समझें
तू समझता रहे हमें कुछ भी
हम तुझे क्यों न दिलरुबा समझें
पूछा उनसे कि आप चुप क्यों हैं
हँस के बोले कि जो कहा, समझें
एक गर्दिश से दूसरी गर्दिश
ज़िन्दगी, बस ये सिलसिला समझें
तितलियाँ मुँह फिरा रही हैं, गुलाब!
अब है बदली हुई हवा, समझें
<poem>