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Kavita Kosh से
हो तेरी गोद में सर, हमने ये कब चाहा था!
यों तो मंजिल मंज़िल पे पहुँचने की खुशी है, ऐ दोस्त!
ख़त्म हो जाय सफ़र, हमने ये कब चाहा था!