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Kavita Kosh से
हमारी रात अँधेरी से चाँदनी बन जाय
ज़रा सा रुख रुख़ तो मिलाओ कि ज़िन्दगी बन जाय
वे और होते हैं जिनसे कि बंदगी बन जाय