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Kavita Kosh से
जान उन पर लुटाके बैठ गए
हम भी उस दर पे जा के जाके बैठ गए
लाख तूफ़ान उठ रहे थे, मगर
हम ज़रा छाँव पाके बैठ गए
लीजिये मूँद ली लीं आँखें हमने
आप क्यों मुँह फिराके बैठ गए!