भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
अपनी पँखुरियों को छितराकर, आज गुलाब ये कहता था,
'खूब ख़ूब जिन्हें खिलना हो खिले अब, हम तो हवा पे सवार हुए'
<poem>