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Kavita Kosh से
हम उनके प्यार में जगते रहे हैं सारी रात
ये क्या हुआ कि सुबह उनकी एक झलक न मिली,
कभी तो पायेंगे काग़ज़ गुलाब की रंगत
हम अपने खून ख़ून से रंगते रहे हैं सारी रात
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