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Kavita Kosh से
वर्तनी व फ़ॉर्मेट सुधार
हम पीछे सुलझा ही लेंगे
तुम पहले कंधों पर सूरज
लादे होने का भ्रम छोड़ो ।
चिकने पत्थर की पगडंडी
नदी किनारे जो जाती है
कैसे नदी किनारे रुनझुन
किसी भोर की शुभ वेला में
जा पाएगी
कैसे सूनी राह
साँस औ' आँख मूँद
पलकें मीचे भी
चलता
प्रथम किरण से पहले-पहले
प्रतिक्षण
मंत्र उचारे कोई ?
कैसे कूद-फाँदते बच्चे
गाएँगे ऋतुओँ की गीता ?
कैसे हवा उठेगी ऊपर
तपने पर भी ?
कैसे कोई बारिश में भीगेगा हँस कर ?
छत पर आग उगाने वाले
दीवारों के सन्नाटों में
तुम पहले कंधों पर सूरज
लादे होने का भ्रम छोड़ो ।
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